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‘ भविष्य झाँकने का एक प्रयास ’                                                                                      

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 : व्रत कथा : 

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सोमवार व्रत कथा :

धर्म ग्रंथों के अनुसार किसी नगर में एक साहूकार रहता था । उसके घर में धन-धान्य की कोई कमी नहीं थी, परन्तु साहूकार के कोई संतान नहीं थी । जिसके कारण वह बेहद दुखी था । पुत्र प्राप्ति के लिए वह प्रत्येक सोमवार व्रत रखता था, और पूरी श्रद्धा के साथ शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव और पार्वती जी की पूजा करता था । साहूकार की इस भक्ति को देखकर मां पार्वती प्रसन्न हो गई, और भगवान शिव से उस साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने का निवेदन किया । पार्वती जी की इच्छा सुनकर भगवान शिव ने कहा कि, हे पार्वती ! इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों के अनुसार फल मिलता है, और जिसके भाग्य में जो हो, उसे भोगना ही पड़ता है । लेकिन पार्वती जी ने साहूकार की भक्ति का मान रखने के लिए उसकी मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा जताई । माता पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान तो दिया, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि, उसके बालक की आयु केवल बारह वर्ष होगी । भगवान शिव और देवी पार्वती और की इस बातचीत को साहूकार सुन रहा था । उसे ना तो इस बात की खुशी थी और ना ही गम था । वह पहले की तरह भगवान शिवजी की पूजा करता रहा । कुछ समय बाद साहूकार के घर एक पुत्र का जन्म हुआ । जब वह बालक ग्यारह वर्ष का हुआ तो, उसे पढ़ने के लिए काशी भेज दिया गया ।

साहूकार ने पुत्र के मामा को बुलाकर उसे बहुत सारा धन दिया, और कहा कि, तुम इस बालक को काशी विद्या प्राप्ति के लिए ले जाओ, और मार्ग में यज्ञ कराओ । जहां भी यज्ञ कराओ, वहीं पर ब्राह्मणों को भोजन कराते और दक्षिणा देते हुए जाना । दोनों मामा-भांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देते काशी की ओर चल पड़े । राते में एक नगर पड़ा, जहां नगर के राजा की कन्या का विवाह था । लेकिन जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था, वह एक आंख से काना था । राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए एक चाल सोची । साहूकार के पुत्र को देखकर उसके मन में एक विचार आया । उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं । विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा, और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा । लड़के को दूल्हे का वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया । लेकिन साहूकार का पुत्र एक ईमानदार शख्स था । उसे यह बात न्यायसंगत नहीं लगी । उसने अवसर पाकर राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर लिखा कि, तुम्हारा विवाह मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है । मैं तो काशी पढ़ने जा रहा हूं । जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी बातें पढ़ी तो उसने अपने माता पिता को यह बात बताई । राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया, जिससे बारात वापस चली गई । दूसरी ओर साहूकार का लड़का और उसका मामा काशी पहुंचे, और वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया । जिस दिन लड़के की आयु बारह वर्ष की हुई, उसी दिन यज्ञ रखा गया । लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है । मामा ने कहा कि, तुम अन्दर जाकर सो जाओ । शिव जी के वरदानुसार कुछ ही क्षणों में उस बालक के प्राण निकल गए । मृत भांजे को देख उसके मामा ने विलाप शुरू किया । संयोगवश उसी समय शिव जी और माता पार्वती उधर से जा रहे थे । पार्वती ने भगवान से कहा प्राणनाथ, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहा । आप इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर करें | जब शिवजी मृत बालक के समीप गए तो वह बोले कि, यह उसी साहूकार का पुत्र है, जिसे मैंने बारह वर्ष की आयु का वरदान दिया । अब इसकी आयु पूरी हो चुकी है, लेकिन मातृ भाव से विभोर माता पार्वती ने कहा कि, हे महादेव ! आप इस बालक को और आयु देने की कृपा करें, अन्यथा इसके वियोग में इसके माता पिता भी तड़प तड़प कर मर जाएंगे । माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया | शिवजी की कृपा से वह लड़का जीवित हो गया । शिक्षा समाप्त करके लड़का मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिए । दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था । उस नगर में भी उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया । उस लड़के के ससुर ने उसे पहचान लिया, और महल में ले जाकर उसकी आवभगत की, और अपनी पुत्री को विदा किया ।

इधर भूखे-प्यासे रहकर साहूकार और उसकी पत्नी बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे । उन्होंने प्रण कर रखा था कि, यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह भी प्राण त्याग देंगे, परंतु अपने बेटे के जीवित होने का समाचार पाकर वह बेहद प्रसन्न हुए । उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा, हे श्रेष्ठी ! मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है । जो कोई सोमवार व्रत करता है, या कथा सुनता, और पढ़ता है, उसके सभी दुख दूर होते हैं, और समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं । हिन्दू धर्म के अनुसार सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है । जो व्यक्ति सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा करते हैं, उन्हें मनोवांछित फल अवश्य मिलता है ।

सोमवार व्रत के प्रकार :

प्राचीन शास्त्रों के अनुसार सोमवार के व्रत तीन तरह के होते हैं । सोमवार, सोलह सोमवार और सौम्य प्रदोष । सोमवार व्रत की विधि सभी व्रतों में समान होती है । सोमवार का व्रत चैत्र वैशाख श्रावण मार्गशीर्ष व कार्तिक मास में प्रारम्भ किया जाता है । साधारणतः श्रावण माह में सोमवार व्रत का विशेष प्रचलन है । भविष्य पुराण के मतानुसार चैत्र शुक्ल अष्टमी को सोमवार और आद्रा नक्षत्र हो तो, उस दिन से सोमवार व्रत प्रारम्भ करना चाहिए । श्रावण सोमवार के व्रत में भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा की जाती है ।

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